Menu
blogid : 2646 postid : 6

सौदागर सरकारें और त्रस्त उपभोक्ता

दबंग आवाज
दबंग आवाज
  • 139 Posts
  • 660 Comments

किसी भी देश की राष्ट्रीय सरकार की जबाबदारी केवल अपने लिए अतिरिक्त आर्थिक ताकत पैदा करने के साथ पूरी नहीं हो जाती है | यह सच है कि आज के भूमंडलीकरण के दौर में विकसित देशों के सामने ठहरने के लिए उनके समान आर्थिक व्रद्धि हासिल करना जरूरी है , किन्तु उतना ही जरूरी देश के अंदर की आर्थिक गतिविधियों को समाज के निचले स्तर तक ले जाना भी है | यदि देश की एक बड़ी जनसंख्या की भागीदारी आर्थिक तरक्की के अंदर नहीं होगी तो सरकारों के द्वारा बनाए गए नियम और नीतियां कालान्तर में देश के लिए बोझ ही साबित होते हैं | एक लक्षित और संतुलित विकास न केवल देशवासियों को विकास के पथ पर ले जा सकता है , बल्कि वैश्विक प्रतिद्वंदता में खड़े होने की शक्ति भी देता है | भारत में मौजूदा अप्रत्यक्ष कर प्रणाली की जगह और उन्नत वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली को लागू करने की कवायद के पीछे भी यही भावना काम करना चाहिये थी , पर देशवासियों के दुर्भाग्य से देश की मौजूदा सरकार और उसके वित्तमंत्री जीएसटी के जिस ढाँचे को सामने लेकर आये हैं , वह विश्वव्यापार संगठन और विकसित देशों को जितना भी खुश कर दे , भारत के आम उपभोक्ताओं के लिए तो कहर बरपाने वाला ही है |
भारत से पहले 140 देश जीएसटी को अपने देश में लागू कर चुके हैं और उनमें से भी अधिकाँश ने इसे भूमंडलीकरण के दौर में याने पिछले तीन दशकों में ही इसे अपनाया है | उनके अनुभव हमारे सामने थे और भारत सरकार चाहती तो उन देशों में हुई और हो रही परेशानियों से सबक लेकर और भी बेहतर जीएसटी प्रस्ताव लेकर आ सकती थी | आस्ट्रेलिया में जीएसटी लागू करने की कवायद 1985 में शुरू हुई थी , तब जाकर यह 1 जुलाई 2000 से लागू हो पाया था | इसमें ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह 10 प्रतिशत की दर से लागू हुआ था और आज भी 10 प्रतिशत ही है | बुनियादी खाद्यान्न , ताजा भोजन , लायब्रेरी बुक्स , स्कूल टेक्स्ट बुक्स को जीएसटी से छूट है | इसके बावजूद आस्ट्रेलिया में इसे एक प्रतिगामी टेक्स माना जाता है , जिसका विपरीत प्रभाव अल्प या कम आय समूह पर ज्यादा पड़ा है | आस्ट्रेलिया में जीएसटी लागू होने के बाद से मांग में कमी आई है | न्यूजीलेंड में जीएसटी 10प्रतिशत की दर से 1986 में लागू हुआ था |1989 में इसे बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत किया गया और अब अक्टोबर 2010 में इसे बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने की योजना है | न्यूजीलेंड में जीएसटी की दरों में वृद्धि का भारी विरोध हुआ है | कनाडा उन दो देशों में से एक है जहां भारत में प्रस्तावित जीएसटी के सामान दोहरी दरें हैं | कनाडा में जीएसटी की दर अभी तक केवल 5 प्रतिशत ही है |
यदि जीएसटी की दरों को विश्व के पैमाने पर देखा जाए तो इसका औसत प्रतिशत 15.5 आता है | इस लिहाज से देखा जाए तो वित्तमंत्री के प्रस्ताव न केवल अभी बहुत अधिक है , बल्कि तीन साल बाद जब वे कह रहें कि सभी वस्तुओं और सेवाओं पर एक ही दर 16 प्रतिशत लागू होगी , तब भी यह भूमंडलीय औसत से ज्यादा ही होगी | यहाँ यह याद रखना भी उचित होगा कि 13वें वित्त आयोग ने सरकार से सिफारिश की थी कि जीएसटी की कुल दर 12 प्रतिशत ही रखी जाए , 5 प्रतिशत सेन्ट्रल जीएसटी के लिए और 7 प्रतिशत स्टेट जीएसटी के लिए | पर सरकारें भी अजीबोगरीब होती हैं | जब कोई कमेटी मूल्यों या करों में वृद्धि की सिफारिश करती है तो उसे तुरंत लागू करने के लिये सरकार पीछे पड़ जाती है , लेकिन यदि सिफारिश टेक्स कम करने या मूल्य कम करने की है , तो उसे रद्दी की टोकरी में डालने में सरकार को कोई समय नहीं लगता | इसीलिये 13वें वित्त आयोग की सिफारिशों को नकारने में सरकार को कोई समय नहीं लगा | जहाँ तक सेवा कर का प्रश्न है , वर्त्तमान में यह 10 प्रतिशत है और शिक्षण तथा स्वास्थ्य सेवाओं को इससे छूट प्राप्त है | परन्तु , जीएसटी में इसे बढ़ाकर 16 प्रतिशत करने के साथ साथ शिक्षण और स्वास्थ्य सेवाओं को भी इसके दायरे में ले लिया गया है | इसका नतीजा यह होगा कि छोटी निजी शिक्षण संस्थाओं , छोटे अस्पतालों द्वारा दी जा रही सेवाएं महंगी होकर आम लोगों के लिए फजीहत का कारण बनेंगी | इतना ही नहीं सेवा कर के दायरे में और अधिक सेवाओं को शामिल करने से आम लोगों को अचानक छोटे से छोटे कार्य के लिए भी सेवाओं के महंगे होने के चलते , उनका उपभोग त्यागना पड़ेगा , जिसके चलते सेवा क्षेत्र में रोजगार में लगे लोगों और स्वरोजगारियों को मंदी और बेरोजगारी को झेलना पड़ेगा |
जीएसटी में उन्हीं 99 वस्तुओं को कर मुक्त रखने का प्रस्ताव है , जिन्हें वेट कर व्यवस्था में कर मुक्त रखने की सिफारिश तात्कालिक इम्पावर्ड कमेटी ने की थी | लेकिन , अनुभव बताता है कि राज्यों में वेट व्यवस्था लागू होने पर उपरोक्त सूची व्यावाहारिक रूप से अपर्याप्त निकली और राज्यों ने उस सूची से इतर अनेक वस्तुओं को कर मुक्त किया था | प्रायः सभी राज्यों में लघु और घरेलु उद्योग के बतौर मसालों , बड़ी , पापड़ , अचार , दौना-पत्तल , लोकल कपड़े धोने और नहाने के साबुन जैसी अनेक वस्तुओं का उत्पादन होता है , जो उस सूची से बाहर हैं | इसके अतिरिक्त प्रत्येक राज्य में स्थानीय शिल्प कला से सम्बंधित अन्य अनेक वस्तुओं का निर्माण होता है ,जो स्थानीय अपेक्षाकृत निर्धन किन्तु कुशल कारीगरों के द्वारा बनाई जाती हैं | उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में लकड़ी की कलाकृतियां , तो चांपा-जांजगीर क्षेत्र में कोसा के कपड़ों का काम बहुतायत से होता है | ये राज्य की हस्तशिल्प की सदियों पुरानी परम्परा की वाहक ही नहीं हैं , बल्कि राज्य की संस्कृति की पहचान भी हैं | जीएसटी की नयी व्यवस्था में यदि ये सब 16 प्रतिशत कर के दायरे में आईं तो न केवल इन शिल्पों के समाप्त होने का भय है , बल्कि इनसे जुड़े सैकड़ों कारीगरों के बेरोजगार होकर बर्बाद होने का खतरा भी है | गरीबी , आय उपार्जन के साधन नहीं होने के कारण , कर्ज के चलते आत्महत्याओं के मामले अब गाँव और किसानों तक सीमित न होकर शहरों में भी होने लगे हैं | कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि ये बढ़कर हमारे पारंपरिक कार्य करने वाले कारीगरों तक पहुँच जायें |
इसी तरह दैनिक आवश्यकता की अनेक वस्तुओं के 12 प्रतिशत कर की सीमा में आने की संभावना है | सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसियेशन आफ इंडिया , जो खाद्य तेल उद्योग का संगठन है , ने वित्तमंत्री और राज्य वित्तमंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति के चेयरमेन असीम दास गुप्ता को ज्ञापन देकर कहा है कि खाद्य तेल जैसी वस्तुओं पर 12 प्रतिशत कर लगाने का व्यापक प्रभाव कीमतों पर पड़ेगा | ज्ञातव्य है कि खाद्य तेलों पर अभी उत्पाद शुल्क लगता ही नहीं है और वेट 4-5 प्रतिशत से अधिक कहीं नहीं है , बल्कि केरल जैसे अनेक राज्य हैं , जहां वेट भी शून्य है | एसोसियेशन ने इसके सम्भावित परिणामों से भी आगाह किया है | एसोसिएशन के अनुसार , 12 प्रतिशत टेक्स लगाने पर , खाद्य तेलों की बिक्री पर टेक्स चोरी बढ़ने लगेगी | पिछले वर्षों में टेक्स कम होने के कारण टेक्स की चोरी में खासी कमी आयी है | इसके अलावा टेक्स बढ़ने पर खाद्य तेल महंगे हो जायेंगे और उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ जाएगा और इसका सबसे अधिक असर गरीबों पर ही होगा | एसोसियेशन के अनुसार खाद्य तेल आवश्यक वस्तु के हिसाब से अत्याधिक संवेदनशील है | इससे महंगाई पर तुरंत असर दिखाई देगा और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक बढ़ने लगेगा | खाद्य तेलों में मिलावट की भी समस्या के बढ़ने की आशंका है | टेक्स चोरी और मिलावट की बात केवल खाद्य तेलों के साथ ही नहीं है बल्कि सभी वस्तुओं पर यह लागू होता है | देश के उद्योग जगत ने भी ऐसी ही आशंका जताते हुए कहा है कि जीएसटी को इस तरह डिजाइन करना चाहिये कि उससे समस्त आर्थिक गतिविधियों की कुशलता बढ़े तथा अर्थव्यवस्था की उत्पादकता में बढोत्तरी हो | साथ ही साथ घरेलु उत्पादों और सेवाओं के मूल्यों में कमी आये और उपभोग में वृद्धि हो |
जीएसटी में यह प्रावधान भी है कि उन सभी लघु उद्योग की इकाइयों पर , जिनका टर्नओवर 1.5 करोड़ रुपये से अधिक होगा , केंद्रीय जीएसटी भी लागू होगा | इसका मतलब हुआ कि वे सभी इकाईयां जों अभी सेन्ट्रल एक्साईज से मुक्त है , वे भी केंद्रीय कर के दायरे में आ जायेंगी | इसका संभावित परिणाम यह होगा कि प्रतिस्पर्धा में नहीं ठहर पाने के कारण बहुत सी इकाईयाँ बंद होने की कगार पर आ जायेंगी | जिससे अनेक लोगों के बेरोजगार होने की भी संभावनाएं हैं | इसके अतिरिक्त आम जनता भी इनसे प्राप्त होने वाले अपेक्षाकृत सस्ते उत्पादों से वंचित हो जायेगी |

राज्यों के वित्तमंत्रियों की अधिकार प्राप्त कमेटी ने केंद्रीय वित्तमंत्री के द्वारा सुरक्षित किये गए वीटो पावर तथा जीएसटी विवाद प्राधिकरण में केंद्रीय प्रतिनिधियों की दखलंदाजी के अलावा उपरोक्त सारे सवालों पर भी आपत्तियां उठाईं थीं | निश्चित रूप से राज्यों को बुनियादी रूप से जनता के साथ सीधे संबंधों में ही नहीं रहना पड़ता है , बल्कि राज्य के लोगों की बेहतरी की भी सीधी जिम्मेदारी राज्य सरकारों की ही होती है | अभी महंगाई के सवाल पर लोकसभा तथा राज्यसभा में हुई बहस के दौरान हमने देखा कि केंद्रीय वित्तमंत्री ने जमाखोरी और कालाबाजारी नहीं रोक पाने ठीकरा राज्यों के सर पर फोड़ा था , इसलिए राज्यों से यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि जीएसटी के मामले में वे सोच समझकर कदम उठाएंगे |

जब केंद्रीय वित्तमंत्री कहते हैं कि जीएसटी लागू होने के बाद एक वर्ष के भीतर देश की अर्थव्यवस्था एक खरब से दो खरब की हो जायेगी , तो , इसका अर्थ होता है कि जनता को आने वाले समय में और अधिक वस्तुओं तथा सेवाओं पर बढ़ा हुआ कर देने के लिए तैयार हो जाना चाहिये | हाल के समाचारों के अनुसार केन्द्र जो नया फार्मूला लेकर आ रहा है , वह सभी राज्यों को स्वीकार्य होने की संभावना है | केन्द्र के द्वारा जीएसटी पर प्रस्तुत प्रारूप पर राज्य सरकारों को मुख्यतः उन प्रावधानों पर विरोध था , जो राज्य सरकारों के वित्तीय अधिकारों में कटौती करते थे या राज्य में जीएसटी पर होने वाले किसी विवाद में केंद्र के हस्तक्षेप को अवश्यंभावी ठहराते थे | समझा जाता है कि केंद्र सरकार अब मूल प्रस्ताव में संशोधन करने जा रही है जिससे जीएसटी परिषद में केंद्रीय वित्तमंत्री के वीटो पावर के साथ साथ राज्यों को भी वीटो पावर होगा | इसके परिणाम स्वरूप जीएसटी परिषद में तभी कोई निर्णय लिया जा सकेगा , जब केंद्र और राज्य दोनों एकमत हों | इसी तरह से जीएसटी विवाद प्राधिकरण में केंद्र के प्रतिनिधी रहेंगे , पर वे राज्यों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे | यदि 18 अगस्त को होने वाली बैठक में राज्य केन्द्र के साथ ऐसे किसी समझौते पर राजी हो जाते हैं और बाकी सभी मुद्दों को छोड़ देते हैं तो सौदागर सरकारों के बीच फंसा उपभोक्ता त्रस्त तो होगा ही |
अरुण …..

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh