Menu
blogid : 2646 postid : 44

लीबिया पर हमला , सुपर पावर का परमाधिकार –

दबंग आवाज
दबंग आवाज
  • 139 Posts
  • 660 Comments

लीबिया पर हमला , सुपरपावर का परमाधिकार –

नाटो की अगवाई में ब्रिटेन , फ्रांस और अमेरिका के द्वारा लीबिया पर किये गये हवाई हमले के ऊपर अब अमेरिका सहित पूरी दुनिया में सवाल उठाये जा रहे हैं | कोई नहीं बता सकता कि मध्यपूर्व में पिछले दो दशकों में छेड़ा गया यह तीसरा एकतरफा युद्ध कैसे और कब खत्म होगा ? अमेरिका अब लीबिया में वही कर रहा है जो उसने इराक में किया था , जिसकी वजह से इराक में बड़े पैमाने पर विध्वंस हुआ और एक लाख से ऊपर लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा | अमेरिका के इस रुदन के बावजूद कि वह गद्दाफी से लीबियाई लोगों को सुरक्षा प्रदान कर रहा है , सचाई यही है कि जो कोई भी इस हमले के पीछे किसी सिद्धांत या तर्क को ढूंढेगा , उसे निराशा ही हाथ लगेगी , क्योंकि अरब देशों में लोकतंत्र के लिए आये उभार में अमेरिका का यह हस्तक्षेप केवल उस परमाधिकार को दिखाने के लिए है जो अमेरिका समझता है कि दुनिया की सुपर पावर होने के नाते उसे प्राप्त है |

यह सच है कि किसी के लिए भी गद्दाफी का समर्थन करना संभव नहीं है जिसने बेंघजाई की सडकों को लोकतंत्र की मांग करने वाले लोगों के खून से रंग दिया | पर , इसका मतलब कतई यह तो नहीं हो सकता कि अमेरिका और उसके सहयोगियों को वही करने की छूट दे दी जाए और वह भी तब , जब पूरी दुनिया के सामने यह उजागर हो कि अमेरिका सहित पश्चिमी देशों का स्वार्थ मध्यपूर्व के देशों में लोगों की भलाई करने के बजाय वहाँ के तेल के भंडारों पर अपनी पकड़ बनाए रखना है | वरना जब बहरीन में वहाँ का शासक अल – खलीफा परिवार लोगों के लोकतंत्र की बहाली के लिए किये जा रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को निर्ममता के साथ कुचल रहा था , पश्चिमी ताकतें आपराधिक मौन नहीं बनाए रखतीं | क्या यह इसलिए नहीं किया गया कि वहाँ अमेरिका की नौसेना का पांचवा बेड़ा पर्शियन गल्फ के आरपार फैला हुआ है , जहां से दुनिया में पैदा होने वाले समुद्री तेल के चालीस प्रतिशत जहाज जरुर गुजरते हैं और यहाँ से ईरान के ऊपर नजर रखना भी आसान है |

इसी तरह , यमन में , वहाँ के तानाशाह अली अब्दुल्लाह सालेह की सेनाओं ने लोकतांत्रिक सुधारों की मांग करने वाले दर्जनों निहत्थे और शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले लोगों का कत्ले आम किया किन्तु वहाँ अमेरिका ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया क्योंकि अमेरिका सालेह को अलकायदा के खिलाफ एक अच्छा सहयोगी मानता है | अमेरिका को मालूम है कि यमन में अलकायदा का सक्रिय और खतरनाक आधार है , जहां से अमेरिका के खिलाफ हमले प्लान किये जा सकते हैं , इसीलिए , सालेह एक निरंकुश तानाशाह होने के बावजूद , अमेरिका के लिए बहुत उपयोगी है | लीबिया पर आक्रमण इसलिए कि यमन , बहरीन , सउदी अरब , जोर्डन , पर्शियन गल्फ के तानाशाह अमेरिका के हितों का ख्याल रखते हैं , दोस्ताना हैं , सहयोगी हैं , इसलिए उपयोगी हैं , जो गद्दाफी नहीं है | जो अमेरिका के खिलाफ जाएगा , उसे बम मिलेंगे और जो अमेरिका के हितों के अनुरूप रहेगा , उसे शाबाशी मिलेगी | अमेरिका की विदेश नीती का यही लब्बोलुआब है |

मिश्र में भी अमेरिका वहाँ के तानाशाह प्रेसीडेंट को पदच्युत नहीं देखना चाहता था | इसीलिये , अमेरिका की स्टेट सेक्रेटरी श्रीमती हिलेरी क्लींटन ने शुरुवात में कहा था कि होसनी मुबारक का शासन मिश्र में “स्टेबल” है याने अमेरिका उम्मीद कर रहा था कि मिश्र में सेनाएं लोकतंत्र की माँग करने वालों पर बलप्रयोग करके काबू पा लेंगी | होसनी मुबारक नृशंस और भ्रष्ट है , यह अमेरिका को छोड़कर सब जानते थे | यह तो तब , जब यह बिलकुल स्पष्ट हो गया कि होसनी मुबारक की पकड़ शासन पर से पूरी तरह खत्म हो गयी है और मिश्र की सेना शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों पर दमन कर आंदोलन को नहीं कुचलेगी , अमेरिका ने लोकतंत्र समर्थक आंदोलनकारियों की तरफ अपना रुख किया | अभी , जब संयुक्त राष्ट्र संघ से लीबिया को “नो फ्लाई जोन” घोषित करवाने के बाद , लीबिया पर किये गये आक्रमण के औचित्य पर बराक ओबामा से प्रश्न किये गये तो उन्होंने वही घिसे पिटे तर्क दिए , जो उनसे पूर्व के अमेरिकन राष्ट्रपति दिया करते थे | ओबामा का कहना था कि यदि लीबियाई जनता के ऊपर गद्दाफी के अत्याचारों को रोका नहीं गया तो “मध्यपूर्व का पूरा का पूरा क्षेत्र अस्थिर हो जाएगा और अमेरिका के बहुत से सहयोगी और साथी खतरे में आ जायेंगे” | अब , अमेरिका का राष्ट्रपति इतना नासमझ तो हो नहीं सकता कि उसको यह नहीं मालूम हो कि मध्यपूर्व का पूरा क्षेत्र और विशेषकर उसके सहयोगी और साथी देश पहले ही खतरे में आ चुके हैं और यह खतरा गद्दाफी का नहीं है बल्कि उन देशों के लोगों के अंदर लोकतंत्र के लिए पैदा हुई आकांक्षा का है |

इसमें कोई शक नहीं कि गद्दाफी का व्यवहार अपनी ही जनता के खिलाफ सनक से भरा हुआ और बदतरीन है | इसमें कोई शक नहीं कि वो लीबिया में लोकतंत्र की स्थापना के लिए किसी की भी सलाह नहीं सुनने वाला | इसमें भी कोई शक नहीं कि उससे छुटकारा पाकर लीबिया की जनता बहुत राहत पायेगी लेकिन इससे लीबिया के ऊपर किया जा रहा यह आक्रमण न्यायोचित नहीं हो जाता | लीबिया की जनता के ऊपर भरोसा रखना चाहिए , उसे सैनिक नहीं , नैतिक समर्थन की जरुरत है | यह लीबिया का अंदुरुनी संघर्ष है | नाटो की अगुवाई में , पश्चिम का लीबिया के ऊपर यह हमला , लीबिया की सार्वभौमिकता पर हमला है | अमेरिका गद्दाफी को समाप्त कर वहाँ इराक की तरह एक कठपुतली सरकार बिठाने की फिराक में है , जो अमेरिका के इशारे पर चले | अमेरिका को तो इसका कतई अधिकार नहीं कि वह लीबिया की मामले में बोले , जो यमन , साउदी अरब , जोर्डन , बहरीन और पर्शियन गल्फ जैसे देशों के तानाशाहों को समर्थन दिए हुए है | अमेरिका से अब स्वतंत्रता , लोकतांत्रिक अधिकार और मानवाधिकारों के बारे में कोई सुनना पसंद नहीं करता क्योंकि सब जान चुके हैं कि इसकी आड़ में अमेरिका अपना उल्लू सीधा करता है और दुनिया के ऊपर अपना परमाधिकार दिखाता है | लीबिया को जब नो फ्लाई जोन घोषित करने का प्रस्ताव लाया गया था , भारत ने अन्य चार देशों के साथ सुरक्षा परिषद से बहिर्गमन किया था | लीबिया की सार्वभौमिकता की रक्षा के लिए भारत को अब संयुक्त राष्ट्र में पूरे मामले पर पुनर्विचार की मांग के साथ इस हमले का विरोध करना चाहिए |

अरुण कान्त शुक्ला –

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh