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भ्रष्टाचार और अपराध की गिरफ्त में अमीर प्रदेश गरीब लोग –

दबंग आवाज
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भ्रष्टाचार और अपराध की गिरफ्त में अमीर प्रदेश गरीब लोग –

छत्तीसगढ़ का भाजपा शासन इसे माने या न माने लेकिन कडुवा सच यही है कि भाजपा के शासन में इस अमीर प्रदेश के गरीब लोग नित नए होने वाले घोटालों , लगातार बढ़ते जा रहे अपराधों और गिरती क़ानून व्यवस्था की स्थिति से बुरी तरह त्रस्त हो चुके हैं | प्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल को 19 जून की पीएमटी की परीक्षाओं को पर्चे लीक हो जाने की वजह से दूसरी बार निरस्त करना पड़ा | व्यापम को यही परीक्षा पिछले माह भी पर्चे लीक होने की वजह से 11 मई को निरस्त करना पड़ी थी | व्यापम की देखरेख में होने वाली इस परीक्षा के पर्चे जिस मात्रा में और जिस स्तर पर लीक हुए हैं , उससे स्पष्ट है कि इस कांड के तार नौकरशाहों से होते हुए शीर्ष शासन तक अवश्य जुड़े हैं , जिसके बिना इस दबंगई के साथ इस अपराध को अंजाम नहीं दिया जा सकता था | इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यह है कि 37 दिन पूर्व 11 मई,2011 को आयोजित इसी परीक्षा के पर्चे लीक हो जाने के बावजूद , व्यापम के अध्यक्ष और परीक्षा नियंत्रक हटाये नहीं गये | उन्हें हटाने का शासन ने आदेश जरुर दिया , पर , उस आदेश पर न तो शासन गंभीर था और न आदेश पर अमल किया गया |

प्रदेश में पीएमटी के पर्चे लीक होने का यह इकलौता मामला नहीं है | इसके पूर्व पीएससी की परीक्षा के परिणामों में घपला कर के उन लोगों को चुना गया , जो पात्र नहीं थे | बाद में जब कुछ अभ्यर्थियों ने सूचना के अधिकार का प्रयोग कर परिणामों को खुलवाया तो पूरा घपला सामने आया और शासन को 4 डिप्टी कलेक्टर सहित कुल 20 नियुक्तियां रद्द करनी पड़ीं , | वर्ष 2008 में , बोर्ड की 12वीं की परीक्षाओं की मेरिट सूची में गड़बड़ी करके एक अपात्र को सूची में प्रथम स्थान पर लाया गया | दरअसल , दिसंबर 2003 से राज्य की सरकार में आई भाजपा खुद की पार्टी के लोगों और बड़े अधिकारियों के ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से हमेशा ही घिरी रही | जिस दो रुपये किलो चावल पर रमन सिंह अपनी पीठ खुद थपथपाते रहते हैं , उसी चावल में , धान की खरीदी से लेकर , राशन दुकानों में चावल के पहुँचने से पहले ही चावल से भरे ट्रक के ट्रक गायब होने और फिर फर्जी राशन कार्डों के जरिये करोड़ों रुपये का हेरफेर करने के कारनामों की पूरी श्रंखला है , जो अभी तक जारी है |

सार्वजनिक सेवाओं का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है , जिसमें घोटाले न हुए हों या नहीं हो रहे हों | स्वास्थ्य विभाग में जाली कंपनियों , जाली आपूर्तिकर्ताओं और अधिकारियों की मिलीभगत से मलेरिया की दवाईयों व अन्य उपकरणों की खरीदी में 20 करोड़ से ऊपर का घपला हुआ , जिसमें सीबीआई ने 2010 में केस दर्ज किया | महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में प्रदेश का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है , जहां घपला न किया गया हो | बस्तर में आदिवासियों की करोड़ों की जमीन अवैधानिक तरीकों से परिवर्तित करके गैर आदिवासियों को बेची गयी | छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल का ओपन एक्सेस विद्युत घोटाला , जो पूरे देश में चर्चा का केन्द्र बना | आंगनवाडी प्रशिक्षणार्थियों को मिलने वाली भत्ते की राशी में गड़बड़ी , आंगनवाड़ी प्रशिक्षण केन्द्रों के खाते से अवैधानिक तरीके से राशी का आहरण , झूला घर संचालन के लिये मिल रही राशी में गड़बड़ी , वे गडबडियां हैं , जो धड़ल्ले से आंगनवाडी प्रोजेक्ट में की गईं हैं और जारी हैं |

घपलों –घोटालों की यह फेहरिस्त लिखते जाने से लंबी होती जायेगी | ये सब वे घपले हैं , जो सीधे सीधे शासन और अधिकारियों से जुड़े हैं | यही कारण है कि राज्य शासन के किसी भी अधिकारी के या किसी आईएएस , आईपीएस या आईएफएस अधिकारी के करोड़पति होने पर भी किसी को आश्चर्य नहीं होता , तो , किसी अधिकारी के ठिकानों पर मारे गये छापों में मिलने वाली अवैधानिक संपत्ति के करोड़ों रुपये की निकलने पर भी आश्चर्य नहीं होता | एक नौकरी पेशा और वह भी सरकारी मुलाजिम , जिसने बीस पच्चीस साल नौकरी करते हुए गुजार दिए हैं या आज कल में रिटायर होने वाला है , अच्छी तरह से जानता है कि ईमानदारी की कमाई से सर छुपाने के लिये छोटा मोटा घर जरुर बन जाये पर करोड़ों की संपत्ति नहीं बनाई जा सकती है | राज्य का आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो , जिसे लोग मजाक में रमण सिंह का थाना भी कहते हैं , लगातार छापामार कार्रवाई करता रहता है , लेकिन उसके आगे सब कुछ रहस्यमय है | ईओडबल्यू के प्रमुख आई जी अवस्थी के अनुसार किसी भी मामले में किसी लोकसेवक को सजा होने की बात उनकी जानकारी में नहीं है |

रमन सरकार की प्रशासनिक असफलता की कहानी भ्रष्टाचार या घोटाले नहीं रोक पाने तक सीमित नहीं है | प्रदेश के अंदर क़ानून व्यवस्था की स्थिति यह है कि पूरे देश के अपराधियों के लिये छत्तीसगढ़ स्वर्ग सदृश शरणस्थली है | बलात्कार हो या बैंक डकैती , महिलाओं के गले से चेन खींचने के मामले हों या मासूम बच्चों का अपहरण और उनकी ह्त्या , सत्ता के मद में किसी को बोलेरो से कुचल देना हो या थाने में पीट पीट कर मार डालना , हर तरह का अपराध प्रदेश में सरे आम और आराम के साथ होता है | बहुत कम मामलों में अपराधी पकडे जाते हैं | यह एक ऐसा प्रदेश है , जहां के गृहमंत्री किसी बच्चे के अपहरण और फिर ह्त्या होने के बाद बोलते हैं कि क्या किया जाये उस परिवार के भाग्य में बच्चे का सुख था ही नहीं |

मुझे याद आता है कि लगभग चार वर्ष पहले के पी एस गिल ने , जिन्हें प्रदेश सरकार ने माओवाद से निपटने के लिये अपना विशेष सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया था , कहा था कि छत्तीसगढ़ में व्याप्त निरंकुश भ्रष्टाचार , लालफीताशाही और दयनीय प्रशासनिक व्यवस्था के कारण वे अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहे थे | मुख्यमंत्री रमन सिंह अपने शासन की चावल से लेकर चप्पल तक की योजनाओं का गुणगान करने और विश्वसनीय छत्तीसगढ़ की गाथा बखान करने से थकते नहीं हैं | पर क्या , चार वर्षों पहले गिल ने जो कुछ कहा था , उसमें कुछ सुधार हुआ है ? यदि , प्रदेश के आम लोगों और विशेषकर ग्रामीण रहवासियों की बात मानी जाये तो , स्थिति बदतर ही हुई है | इंडिया करप्शन स्टडी 2010 के सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश के 66 प्रतिशत लोगों का मानना है कि पिछले वर्षों में प्रदेश में भ्रष्टाचार बढ़ा है | 55 प्रतिशत ग्रामीण रहवासियों का कहना है कि उन्हें सार्वजनिक सेवाओं के इस्तेमाल के लिये रिश्वत देनी पड़ी , जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 28 प्रतिशत है | 50 प्रतिशत ग्रामीण रहवासियों का कहना है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली की सेवाओं में भ्रष्टाचार का स्तर बढ़ा है | यह शायद मुख्यमंत्री रमन सिंह के लिये बहुत दुखदायी होगा कि जिस सार्वजनिक वितरण प्रणाली का वो ढिंढोरा पीटते हैं , उसका लाभ उठाने के लिये 60 प्रतिशत ग्रामीण रहवासियों को रिश्वत देनी पड़ी | कमोबेश यही स्थिति स्कूली शिक्षा , जल आपूर्ति और स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में भी है , जहां भ्रष्टाचार वहीं कायम है , जहां 2005 में था |

यह सच है कि प्रदेश नक्सलवाद की समस्या से बुरी तरह ग्रस्त है और सुरक्षा बलों के जवानों से लेकर आम नागरिकों तथा निरापराध आदिवासियों को अपनी जाने गंवानी पड़ रही हैं | पर , यह भी सच है कि राज्य शासन और संबंधित अधिकारियों को जिस संजीदगी को माओवाद से निपटने के लिये दिखाना चाहिये , उसका अभाव सोच के स्तर से लेकर योजना के स्तर तक स्पष्ट दिखाई पड़ता है | प्रदेश का बस्तर क्षेत्र हो या अन्य कोई आदिवासी क्षेत्र , कांग्रेस या भाजपा , चुनाव भले ही जीत लें , पर आदिवासियों का विश्वास नहीं जीत पा रहे हैं , जिसका पूरा लाभ माओवादीयों को मिल रहा है | बस्तर में आदिवासियों की करोड़ों की भूमी अवैधानिक तरीके से गैरआदिवासियों को बेचने का मामला हो या वनभूमी पट्टा देने का सवाल हो , जहां 4.86 लाख आवेदनों में से केवल 2.14 लाख आवेदन ही स्वीकृत किये गये , जबकि काबिज आदिवासी परिवारों की संख्या 10 लाख से ऊपर थी , कहीं भी शासन की संजीदगी दिखाई नहीं पड़ती है | जाहिर है कि आदिवासियों को जंगल जमीन से महरूम करके उनका विश्वास नहीं जीता जा सकता है | माओवाद के महासमुंद , गरियाबंद और सरायपाली तक फ़ैलने की खबरें प्रदेश के लोगों में असुरक्षा और भय पैदा करती हैं और वे इससे जूझने के लिये पूरी तरह राज्य शासन के साथ जुड़ जाते हैं , बावजूद इसके कि उन्हें उन ज्यादतियों का भी भान होता है , जो माओवादियों से निपटने के नाम पर आदिवासियों के साथ की जाती हैं | प्रदेश की जनता के इस जुड़ाव का अर्थ कदापि यह नहीं निकाला जाना चाहिये कि भाजपा की रमन सरकार को माओवादियों के खिलाफ आम जनता के समर्थन के रूप में परमिट तथा दो रुपये किलो चावल के रूप में लायसेंस प्राप्त हो गया है कि वह पूरे प्रदेश को भ्रष्ट अधिकारियों , माफियाओं , अपराधियों और कुशासन के भरोसे छोड़ दे |

अरुण कान्त शुक्ला

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