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शहीद जवानों को नसीब हुई पहले कचरा गाड़ी और फिर दो शहीदों के पार्थिव शरीर को नसीब हुई एक एम्बुलेंस – किरंदुल के शहीद पोलिस जवानों को छत्तीसगढ़ राज्य सरकार का सम्मान –

दबंग आवाज
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शहीद जवानों को नसीब हुई पहले कचरा गाड़ी और फिर दो शहीदों के पार्थिव शरीर को नसीब हुई एक एम्बुलेंस –
किरंदुल के शहीद पोलिस जवानों को छत्तीसगढ़ राज्य सरकार का सम्मान –

अभी दो दिन पहले मैंने अपने लेख “ भ्रष्टाचार और अपराध की गिरफ्त में अमीर प्रदेश गरीब लोग ” में लिखा था कि “ राज्य शासन और संबंधित अधिकारियों को जिस संजीदगी को माओवाद से निपटने के लिये दिखाना चाहिये , उसका अभाव सोच के स्तर से लेकर योजना के स्तर तक स्पष्ट दिखाई पड़ता है | ” और आज दो दिनों के भीतर मानो राज्य शासन ने उस पर मोहर लगाने के लिये किरंदुल में माओवादियों के हमलों में शहीद हुए पोलिस जवानों के पार्थिव शरीर को कचरा ढोने वाले वाहन में मुख्यालय बुलवाया , किसलिए , ताकि दंतेवाड़ा मुख्यालय में उनको सम्मान देकर , उनके पार्थिव शरीरों को ससम्मान उनके गृहग्राम भिजवाया जाये | कारगिल के शहीदों की याद में हर साल टसुए बहाने वाली भाजपा की राज्य सरकार की खुद के प्रदेश में माओवाद के खिलाफ लड़ने वाले और शहीद होने वाले अपने सिपाहियों के प्रति संवेदना और सम्मान व्यक्त करने का तरीका देखिये कि उनके शवों के नगरपालिका की कचरा गाड़ी में रखकर बुलवाया गया |

माओवाद को छत्तीसगढ़ से जड़मूल से उखाड़ फेंकने का दम दिखाते रहने वाले प्रदेश के डीजीपी विश्वरंजन जी की मजबूरी और असहायता देखिये वो कहते हैं कि उस समय कोई एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं थी , केवल नगरपालिका का वाहन ही उपलब्ध था और जिसे वो वाहन कह रहे हैं , वह कचरा वाहन है | हाँ , उन जवानों के पार्थिव शरीर और उनके परिजनों पर मानो बहुत बड़ा उपकार किया गया हो , वे कहते हैं कि पहले उस कचरा गाड़ी की अच्छे तरीके से साफ सफाई कर दी गयी थी | वे सभी जो दंतेवाड़ा से आगे की भौगोलिक परिस्थिति से ज़रा भी वाकिफ हैं , अच्छी तरह से जानते हैं कि जहां इन जवानों की मृत्यु हुई उसके नजदीक ही किरंदुल बड़ी जगह है और बचेली है , जहां सभी तरह की सहूलियतें , एम्बुलेंस सहित आसानी से उपलब्ध हैं | बचेली में एनएमडीसी की रिहाईशी कालोनी है | वैसे भी अगर शासन ने एनएमडीसी से ही कहा होता तो एम्बुलेंस क्या कोई अन्य बड़ा वाहन भी आसानी से उपलब्ध हो सकता था , परन्तु उसके लिये जिस संजीदगी और संवेदना की आवश्यकता होती है , वह छोटे कर्मचारियों के मरने पर दिखाने के लिये शासन के पास होती कहाँ है ?
सम्मान देने का ढंग का एक नमूना और तुरंत दिखाई दिया कि जशपुर के दो सिपाही लक्ष्मण भगत और अरशन लकड़ा , जिनके गृहग्राम जशपुर जिले में हैं , क्रमशः महुआ टोली और गड़ला , उनके पार्थिव शरीरों को एक ही एम्बुलेंस में रखकर जशपुर के लिये रवाना कर दिया गया | मानो इन शहीद जवानों के सम्मान के साथ खिलवाड़ बकाया रह गया था , वह एम्बुलेंस भी रायगढ़ से कुछ पहले खराब हो गयी | चलो यह तो किसी के साथ भी हो सकता है , पर हद तो तब हुई , जब दंतेवाड़ा और रायगढ़ दोनों जगह उनके परिजनों के द्वारा पोलिस के एवं अन्य अधिकारियों के साथ संपर्क करने के बाद भी घंटों तक कोई मदद नहीं मिली और उनके परिजन भूखे प्यासे शहीदों के पार्थिव शरीर के साथ परेशान होते रहे |

पोलिस हो या सुरक्षा बल , इनके जवानों को हर तरह की तकलीफ झेलने के साथ ओहदे में अपने से बड़े अधिकारियों के रफ व्यवहार को झेलने की ट्रेनिंग अपने आप मिल जाती है और वे ये सब खेलते हुए ही अपने कर्तव्य का पालन करते हैं , लेकिन यदि शहादत के बाद उनके परिवार और उनके मृत शरीरों के साथ जो शासन साधारण सी संवेदनाएं भी न दिखा सके , उसके विकास और गरीबों के लिये लगाए जाने वाले नारों को टसुए बहाने से ज्यादा क्या कहा जायेगा ?

अरुण कांत शुक्ला

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