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कसौटी पर अन्ना टीम –

दबंग आवाज
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कसौटी पर अन्ना टीम –

टीम अन्ना के आचरण के बारे में नित नए हो रहे खुलासे और टीम में उभरते मतभेदों की खबरें उन लोगों के मन में हताशा पैदा करने के लिये पर्याप्त हैं , जो अन्ना को सत्याग्रह के गांधीवादी तौर तरीकों का प्रतिनिधि मानकर , आंदोलन को सिद्धांतों पर आधारित ऐसा आंदोलन मान रहे थे जो सही और गलत तथा अच्छे और बुरे में सही और अच्छे के पक्ष में लड़ा जा रहा था | अरविंद केजरीवाल , किरण बेदी और प्रशांत भूषण के आचरण और अन्ना के मौनव्रत के दौरान तथा मौनव्रत के पूर्व और बाद में दिये गये नित नए बयानों तथा धमकियों ने मध्यवर्ग के उस बड़े हिस्से की भावनाओं को तगड़ी चोट पहुंचाई है , जो अन्ना के साथ , उनकी साफ़ सुथरी छवि के साथ जुड़ा था और उन्हें उनकी टीम में सबसे ज्यादा साफ़ सुथरा और विश्वसनीय मानकर उम्मीद लगाए बैठा था कि वो गलत को कभी भी प्रश्रय नहीं देंगे | हाल में पैदा हुए हालात बताते हैं कि लोगों की इस धारणा को चोट पहुँची है | विशेषकर , अन्ना के ब्लॉग मेनेजर राजू पारुलेकर ने स्वयं अन्ना की हस्तलिपि में हस्ताक्षर की गई चिठ्ठी को ब्लॉग में डालकर अन्ना के एक दिन पूर्व दिये गये बयान को असत्य के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है |


अन्ना टीम के दो महत्वपूर्ण सदस्य किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल अपने कदाचार को इस बिना पर दबंगई के साथ उचित ठहरा रहे हैं क्योंकि वे समाज सेवा के पुनीत कार्य में लगे हैं | गोया , समाज सेवा या एक एनजीओ चलाना ऐसा पुनीत कार्य है कि वह साधारण नागरिक से भी अपेक्षित सदाचार के अनुपालन से उन्हें छूट दे देता है | किरण बेदी स्वयं भारत सरकार में जिम्मेदार पदों पर रह चुकी हैं और वे बेहतर ढंग से जानती हैं कि यात्रा व्यय बिल में हेरफेर कितने भी पुनीत उद्देश्य के साथ क्यों न किया जाये , कदाचार और अनैतिकता ही है | कमोबेश यही स्थिति अरविंद केजरीवाल के साथ है | प्रशासनिक सेवा में रहते हुए किये गये नियमों के उल्लंघन को वे इस बिना पर ठीक ठहराना चाहते हैं , क्योंकि वे सूचना के अधिकार जैसे आंदोलन के लिये काम कर रहे थे | प्रधानमंत्री को जो पत्र उन्होंने लिखा है , वो एक ढिटाई से अधिक कुछ नहीं है | उनसे , क्योंकि उन्हें संविधान की गहरी जानकारी है , यह अपेक्षा तो रखी जा सकती है कि वो पैसा और पत्र भारत के राष्ट्रपति को भेजते , जिसके वे मुलाजिम थे | बहरहाल , विडंबना यह है कि दोनों समाज के लिये उनके द्वारा किये जा रहे कार्यों की कीमत चाहते हैं और वह कीमत है , थोड़े बहुत कदाचार की छूट |


मेरा कोई भी उद्देश्य अन्ना टीम की व्यक्तिगत नीयत पर प्रश्नचिन्ह लगाने का नहीं है | भारत में भ्रष्टाचार के ताने बाने की ढिलाई को समझाने के लिये उपरोक्त विश्लेषण आवश्यक है , इसीलिये किया गया है | भ्रष्टाचार स्वयं में अलग थलग कोई स्वतान्र कृत्य नहीं है , जिसका मनुष्य के आचरण के अन्य मूल्यों , मसलन , नैतिकता , सदाचार या सद्विवेक के साथ कोई संबंध न हो | बल्कि , ये वे मूल्य हैं जो मनुष्य को भ्रष्ट होने से रोकते हैं | यदि व्यक्तिगत रूप से लाभान्वित नहीं होना ही नैतिकता ,सदाचार और सद्विवेक की एकमात्र कसौटी है तो प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की , सद्विवेक को इस्तेमाल नहीं करने के लिये की जा रही , सारी आलोचनाएं व्यर्थ हैं क्योंकि आज तक व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने के लिये सद्विवेक का इस्तेमाल नहीं करके भ्रष्टाचार होते रहने का दोष किसी ने भी उन पर नहीं लगाया है |


दरअसल , शुरुवाती जूनून खत्म होने के साथ यह स्पष्ट होता जा रहा है कि अन्ना टीम की समझ भी भ्रष्टाचार के मामले में उन करोड़ों भारतीयों की औसत समझ से ऊपर नहीं है , जो ये मानते हैं कि भ्रष्टाचार बहुत बुरा है , किन्तु नैतिकता , सदाचार और सद्विवेक को उसमें शामिल नहीं करते | या इसे यूं भी कहा जा सकता है कि भारत में भ्रष्टाचार का ताना बाना इतना ढीला है कि इसके अनेक स्वरूप नैतिकता , सदाचार और सद्विवेक के दायरे से बाहर ही रहते हैं | इसका प्रमुख कारण यह है कि भारतीय समाज में पारिवारिक , व्यक्तिगत और मित्रता के संबंधों को सामाजिक संबंधों से ज्यादा महत्व दिया जाता है | अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल परिवार , मित्रों और खुद से संबंधित संस्थाओं के लिये करने वाले व्यक्ति को सम्मान और प्रतिष्ठता के साथ देखा जाता है | मसलन , कोई प्रभावशाली व्यक्ति अपने परिवार या मित्र समाज के सदस्य का कार्य शासकीय या निजी संस्थान में स्वयं के प्रभाव के चलते नियमों की अवेहलना करके करवाता है , तो उसे अनैतिक या कदाचारी नहीं माना जाता , बल्कि सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है | जो ऐसा नहीं कर सकता , वह प्रभावहीन समझा जाकर असम्मानित होता है | उदाहरण के लिये यदि कोई अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके परिवार या मित्र समाज में किसी ऐसे व्यक्ति को ड्राईविंग लाईसेंस दिलवा सकता है , जिसे गाड़ी चलाना नहीं आता तो वह व्यक्ति प्रभावशाली मानकर सम्मान की दृष्टि से देखा जायेगा | यह समाज में ऊपर से नीचे तक याने संपन्न तबके से लेकर सबसे निचले तबके तक समान रूप से लागू है |


इसी तरह धन , राजनीतिक या पद के प्रभाव के चलते अपने घर पर या कहीं भी अपने अधीनस्थ लोगों से बेगार कराने को भारतीय वातावरण में सम्मान समझा जाता है | प्रभावशाली व्यक्ति न केवल स्वयं से जुड़ी संस्थाओं बल्कि अनेक सार्वजनिक कामों के लिये भी अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके धन एकत्रित करते हैं और इसे वे स्वयं तथा समाज भी सम्मान की दृष्टि से देखता है | विडम्बना यह है कि इस सचाई को कोई भी स्वीकार नहीं करना चाहता है कि जब भी किसी पक्षपात के लिये किसी नियम को तोड़ा जाता है तो उस संस्था की विश्वसनीयता घटती है | इस तरह का पक्षपात बाकी समाज के टूटते विश्वास की कीमत पर किया जाता है , इसे मानने को नियम तोडने वाला तैयार नहीं होता है क्योंकि वह समझता है कि उसने कोई व्यक्तिगत फायदा नहीं उठाया है और अपने कृत्य को वह नैतिकता , सदाचार और सद्विवेक के दायरे से बाहर रखता है | प्रभावशाली व्यक्तियों का यह व्यवहार समाज को नियमों को तोड़ने और फिर उसका बचाव करने के अनैतिक , कदाचारी और अविवेकपूर्ण रास्ते पर ले जाता है |


के लिये किया गया कदाचार , चाहे वह कितने भी अच्छे प्रयोजन के लिये क्यों न हो , समाज की कार्यशैली को भ्रष्ट करता है | दरअसल , भ्रष्टाचार को पनपने के लिये जिस जमीन की जरुरत होती है , यह कदाचार वह जमीन मुहैय्या कराता है | समाज में भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष तभी पुख्ता होगा , जब नैतिकता , सदाचार और सद्विवेक के सिकुड़े दायरे को विस्तृत किया जायेगा | यह बात अन्ना टीम को समझना होगी , हर आरोप के जबाब में जनलोकपाल के विरोधियों की साजिश करार देने से काम नहीं चलेगा |

अरुण कान्त शुक्ला

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