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राष्ट्रीय शर्म के पर्व में एक और विनम्र योगदान —

दबंग आवाज
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राष्ट्रीय शर्म के पर्व में एक और विनम्र योगदान —

देश में राष्ट्रीय शर्म का पर्व चल रहा हो और देश , संस्कृति और सभ्यता की सबसे अधिक बात करने वाली पार्टी का उसमें योगदान न हो , ऐसा कैसे हो सकता है ? कर्नाटक में पहले राज्य सरकार के पर्यटन विभाग ने उडुपी में पर्यटन को विकसित करने के नाम पर जिस अश्लीलता को हो जाने दिया और फिर उसी राज्य सरकार के मंत्री लक्ष्मण सवादी और सीसी पाटिल का विधानसभा के अंदर पॉर्न वीडियो मोबाईल में देखते हुए पाया जाना , राष्ट्रीय शर्म के पुनीत पर्व में विनम्र योगदान माना जाना चाहिए |

दरअसल , हमारे देश के राजनीतिज्ञों ने योग्यता का वो स्तर हासिल कर लिया है कि वो देश को शर्मसार करने का कोई भी अवसर नहीं चूकते | और फिर , देशवासियों की तरफ पलटकर इस तरह देखते हैं , मानो कह रहे हों , देखो , हमने कर दिखाया न ! मेरी बात हो सकता है , कुछ लोगों को बहुत कडुवी लगे , पर आज के दौर की सच्चाई यही है | उडूपी में हुई रेव पार्टी , जिसका वीडियो न्यूज चैनल पर जारी हो चुका है और उसे अभी तक आधा हिन्दुस्तान देख चुका होगा , उसके बारे में कर्नाटक के मुख्यमंत्री और उडूपी के जिला प्रशासन का यह कहना कि वहाँ कोई अश्लीलता नहीं हुई और लक्ष्मण सवादी का यह कहना कि उनके मोबाईल पर वह गेंगरेप का वीडियो देख रहे थे , जो इंडिया का नहीं था और साथी मंत्री से चर्चा कर रहे थे कि रेव पार्टी में ऐसा भी हो सकता था , बताता है कि राष्ट्रीय शर्म इस देश के नागरिकों के लिए ही है , भारत के राजनीतिज्ञों के लिए वह कुछ नहीं है |

किसी भी देश में राजनीतिज्ञों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे देश वासियों के सामने मौजूद समस्याओं और उनके निराकरण के मध्य एक सेतु का काम करेंगे और समाज के अंदर स्वच्छता बनाने के लिए यथासंभव प्रयत्न करते हुए , समाज के महत्वपूर्ण अंग व्यक्ति को स्वच्छ समाज के योग्य बनाने में अपना योगदान देंगे | हमारे देश का राजनीतिक समुदाय , छोटे से वामपंथी धड़े को छोड़कर , इस अपेक्षा पर खरा तो उतरा ही नहीं है , बल्कि उसने , देश की राजनीतिक व्यवस्था को ही पूरी तरह ढहाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है |

बीसवीं सदी के अंतिम दशक की शुरुवात में आज के प्रधानमंत्री के वित्तमंत्रित्व में ही भारतीय राजनीति में विश्वबैंक और आईएमएफ के दखल में उदारीकरण की उन नीतियों पर चलना शुरू हुआ , जहां राजनीति का मकसद बदलकर देश की जनता को कुछ “देने” की बजाय सब कुछ “छीन” लेना हो गया | इसका परिणाम हम देख रहे हैं कि दुनिया के सबसे ज्यादा कुपोषित भारत में हैं और उन्हीं वित्तमंत्री को प्रधानमंत्री के रूप में यह कहना पड़ा कि यह राष्ट्रीय शर्म का विषय है | क्या कुपोषण ही एकमात्र विषय है , जिस पर हमें शर्म करनी चाहिए ? नहीं , सबसे ज्यादा गरीब भी हमारे ही मुल्क में रहते हैं | बेरोजगारी की दर हमारे यहाँ किसी भी और मुल्क से ज्यादा है | भ्रष्टाचार में हम दुनिया में अव्वल हैं | स्विस बैंकों में दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा पैसा काले धन के रूप में हमारा ही जमा है | जिस अमेरिका की दोस्ती पर मनमोहनसिंह गदगदायमान रहते हैं , वहाँ का एक अदना सा सब इन्सपेक्टर रेंक का आफीसर हमारे देश के रक्षामंत्री से लेकर पूर्व राष्ट्रपति तक की नंगा झोली ले लेता है और हम हर बार , अबकी बार किया तो किया , अगली बार करना तब बताउंगा की मुद्रा में रहते हैं |

पर , मुझे लगता है कि राष्ट्रीय शर्म का विषय इनमें से कोई भी नहीं है | राष्ट्रीय शर्म का विषय यह है कि देश के राजनीतिक दल और राजनीतिज्ञ सत्ता के मद में अंधे होकर 2000 वर्ष पूर्व के रोमन शासकों से भी गया बीता व्यवहार कर रहे हैं | रोम के शासक वर्ग ने रोम के संसाधनों और रोम की जनता को लूटकर अपना जीवन इतना संपन्न कर लिया था कि नैतिकता , निष्ठा , सच्चाई और ईमान उनको उनकी ऐय्याशी के रास्ते में रोड़ा लगते थे और उन्होंने उस चौगे को उतार फेंका था | पिछले दो दशकों में हमारे देश के राजनीतिज्ञों और संपन्नों ने भी देश की संपदा और संसाधनों को लूटकर बहुत संपत्ति अर्जित की है और अब वो ऐय्याशी के रास्ते पर बढ़ना चाहते हैं और नैतिकता , निष्ठा , सच्चाई और ईमान का चौंगा उतार फेंकने के अलावा कोई और विकल्प अब उनके सामने नहीं है | वे , यही कर रहे हैं | पर , भारत 2000 वर्ष पूर्व का रोम नहीं है और भारत में रहने वाला आम आदमी रोमन नहीं है , वे यह न भूलें |

अरुण कान्त शुक्ला

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