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बजट 2012-2013 : धनवानों के लिए दयावान और निर्धनों के लिए क्रूर –

दबंग आवाज
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बजट 2012-13 : धनवानों के लिए दयावान और निर्धनों के लिए क्रूर –

जब शुक्रवार को संसद में वर्ष 2012-13 के लिए बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि “वे क्रूर होना चाहते हैं , दयावान होने के लिए” , वे उस सचाई का बयान कर रहे थे , जिससे पिछले लगभग तीन दशकों से इस देश का ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया का कमाने खाने वाला तबका दो-चार हो रहा है | पिछले तीन दशकों से जिन आर्थिक नीतियों पर अमूमन दुनिया के सभी देशों की सरकारें चल रही हैं , वे अपने देशों के जनगण को कुछ “देने” की बजाय , उनसे “छीनकर” धनवानों को देने की नीतियां हैं | केवल प्रणव मुखर्जी ही नहीं , उनके पूर्व के सभी वित्तमंत्री भी निर्धनों के लिए क्रूर हुए हैं ताकि धनवानों के प्रति दयावान हो सकें | हेमलेट के कहे को प्रणव ने दोहराया जरुर पर वे उस उद्देश्य और भावना से कोसों दूर हैं , जिस उद्देश्य और भावना से हेमलेट के मुख से शेक्सपियर ने यह कहलवाया था |

प्रत्येक वर्ष बजट के पहले प्रचार के सारे साधनों का इस्तेमाल करते हुए आयकर में छूट दिए जाने का ऐसा प्रचार किया जाता है कि मानो देश की 70 करोड़ श्रमजीवी जमात के सामने आयकर ही सबसे बड़ी समस्या हो और दवा , कपड़ा , खाना , आवास , यातायात , और अन्य सामाजिक दायित्वों का निर्वाह जैसी जरूरी बातों का उसके जीवन में कोई महत्त्व ही न हो | भारत में लगभग तीन करोड़ तेंतीस लाख लोग आयकर रिटर्न दाखिल करते हैं | इसमें 10 लाख रुपये से उपर की आमदनी वाले लगभग एक करोड़ सत्तर लाख लोग हैं | 6 लाख के लगभग वो हैं जिनकी आय फर्मों और व्यवसाय से आती है | इस बात को जाने भी दें कि 10 लाख से ऊपर की आमदनी वाला तबका वह है , जो पिछले दो दशकों में नवउदारवाद की कृपा से स्थापित हुए लूटतंत्र की नीतियों के चलते अनाप शनाप कमाई करके धनी बना है और इसके पास टेक्स चोरी से कमाया काला धन घोषित आय से काफी ज्यादा है , तो भी आयकर में दी गयी 4500 करोड़ रुपये की छूट तो मात्र कुल जनसंख्या के तीन प्रतिशत हिस्से के पास ही जाना है | जबकि एक्साईज ड्यूटी , सेवाकर में की गयी दो प्रतिशत की वृद्धि के फलस्वरूप रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल होने वालीं वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि का कोप तो उन्हें ही झेलना पडेगा , जिनकी आय दो लाख रुपये सालाना से काफी नीचे है | इसे ही कहते हैं निर्धनों के लिए क्रूर और धनवानों के लिए दयावान |

राजकोषीय घाटा एक और ऐसा क्षेत्र है , जिसे लेकर प्रधानमंत्री , वित्तमंत्री , योजना आयोग , इनसे जुड़े नवशास्त्रीय अर्थशास्त्री और उद्योगपति और उनका पिठ्ठू और पेड मीडिया सभी हमेशा शोर मचाते हैं | इनके निशाने पर हमेशा पेट्रोलियम पदार्थों पर दी जाने वाली सबसीडी के साथ साथ , फर्टिलाईजर्स , किसानों को दी जाने वाली बिजली पर दी जाने वाली सबसीडी और मनरेगा , एनआरएचएम जैसी ग्रामीण क्षेत्रों के लिए चलने वाली योजनाएं तथा गरीबों को दिए जाने वाले खाद्यान्न पर दी जाने वाली सबसीडी होती है | वित्तमंत्री ने पेट्रोलियम पदार्थों की सबसीडी में 25000 करोड़ , फर्टिलाईजर्स पर 6000 करोड़ , मनरेगा में 7000 करोड़ रुपये कम करके उद्योग जगत और वैश्विक संगठनों को सन्देश दिया है कि उनका रास्ता सुधारों का ही है | हास्यास्पद यह है कि इसी सरकार ने वित्तीय वर्ष 2011-12 में 5.3 लाख करोड़ रुपये के राजस्व की छूट विभिन्न तरीकों से उद्योग घरानों को दी थी , जिसमें से 50 हजार करोड़ तो केवल करों में छूट के माध्यम से दिए गए थे |

इससे भी ज्यादा हास्यास्पद यह है कि राजस्व घाटे को लेकर रोने वाली यह सरकार टेक्स और महंगाई बढ़ाकर आम देशवासियों से उगाही करने में तो माहिर है लेकिन टेक्स नहीं पटाने वाले और टेक्स चोरी करने वाले उद्योग घरानों और धनवानों से टेक्स वसूलने में न केवल ढीली है बल्कि कहा जाए तो उसकी रुची ही नहीं है कि धनवानों और ओद्योगिक घरानों से टेक्स वसूला जाए |

दिसंबर, 2011 में संसद में पेश की गयी केग की रिपोर्ट इसका प्रमाण है | रिपोर्ट में बताया गया कि सरकार 1.96 लाख करोड़ रुपये का टेक्स वसूल नहीं कर पायी थी , जिसमें सिर्फ 12 लोगों पर 1.65 लाख करोड़ (90%) टेक्स बकाया था | 28 कंपनियों पर 65,816.58 करोड़ रुपये का टेक्स बकाया था | मार्च , 2010 में आयकर विभाग को कुल 2.29 लाख करोड़ रुपये वसूलने बाकी थे | यह राशी सरकार के कुल प्रत्यक्ष वसूली के 54% के बराबर होती है | वर्ष 2012-13 का बजट 14,90,925 करोड़ रुपये का है , जिसमें सरकार को करों से 9,35,685 करोड़ रुपये ही प्राप्त होने का अनुमान है , याने सरकार को 5,13,590 करोड़ रुपये उधारी और अन्य रास्तों याने अगले वित्तीय वर्ष में फिर कीमतें बढ़ाकर जुटाने होंगे | केग के अनुसार टेक्स की राशी जो वसूली जानी है , वह 3,90,816 करोड़ होती है | यदि प्रणव मुखर्जी उसे वसूल लें तो आने वाले वर्ष में , जिस राजस्व घाटे को जीडीपी के 5.1% तक रखने के लिए वो रो रहे हैं , वो पूरा हो जाएगा | पर , ऐसा होगा क्या ? कभी नहीं , कालान्तर में इसमें से अधिकाँश सेटलमेंट में चला जाएगा या माफ कर दिया जाएगा या कंपनियां दिवालिया हो जायेंगी याने और कुछ भी हो जाएगा , पर ये बकाया टेक्स वसूल नहीं होगा , क्योंकि यह धनवानों पर बकाया है और प्रणव जिस दर्शन में विश्वास करते हैं , उसमें निर्धनों पर इसलिए क्रूर हुआ जाता है कि धनवानों पर दयावान हो सकें |

अरुण कान्त शुक्ला

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