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रामदेव शरणं गच्छामी –

दबंग आवाज
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रामदेव शरणं गच्छामी –

गडकरी को रामदेव के चरणों में नतमस्तक होते देखकर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ | यह गडकरी नतमस्तक नहीं हुए हैं | पूरी एक राजनीतिक संस्कृति रामदेव के चरणों में नतमस्तक हुई है | एक राजनीति , जिसका देशवासियों के जीवन की समस्याओं से कोई लेना देना नहीं है | एक राजनीति , जो प्रतिगामी है और देश को आगे की ओर ले जाने की क्षमता नहीं रखती है | एक राजनीति , जिसका लोकतंत्र में कोई विश्वास नहीं | एक राजनीति जो लोकतंत्र को अपने फासीवादी एजेंडे को लागू करने का साधन समझती है |

यह राजनीतिक पतन की पराकाष्ठा है कि देश के राजनीतिक दल विक्रम बनने के बजाय बैताल बन रहे हैं और बाबाओं को विक्रम बनाकर उनके कंधे पर चढ़कर सरकार में पहुँचने का स्वप्न पाल रहे हैं | ऐसा एक बार हो चुका है और देशवासियों ने उसका हस्र भी देख लिया है | स्वयं भाजपा भी उस हस्र को देख चुकी है , फिर वही राग क्यों ? आधा दर्जन से अधिक राज्यों में सत्ता में रहने के बावजूद , यदि भाजपा को दिल्ली की सरकार पाने के लिए रामदेव के चरणों में स्वयं को समर्पित करना पड़ रहा है , तो फिर उसके पास अपना कुछ भी शेष है क्या ? ऐसी राजनीति और ऐसा सोच जब सरकार में जाएगा तो देश का क्या और बुरा हाल नहीं होगा , क्योंकि आर्थिक नीतियों के नाम पर तो भाजपा के पास अपना कुछ है नहीं और उसे अमेरिका परस्त उन्हें मनमोहनी नीतियों पर चलना है , यह हम एनडीए के दौरान देख चुके हैं |

कांग्रेस के भी अनेक नेता ठीक इसी तरह बाबाओं और आचार्यों के सामने नतमस्तक होते हैं | कुल मिलाकर देश की जनता के अंदर की धार्मिक भावनाओं को शोषित करके अपना उल्लू सीधा करने की राजनीति है ये , और हर हालत में देश के प्रबुद्ध जनों को इसे धिक्कारना होगा , नहीं तो , आने वाला समय जो , निश्चित रूप से इस देश के आम आदमी के लिए बहुत कठिन है , और भी दुर्भाग्यजनक हादसे देश के लोगों के लिए लेकर आएगा | काले धन का मुद्दा कितना भी संवेदनशील और महत्वपूर्ण क्यों न हो और रामदेव उसको लेकर कितने भी उग्र और आंदोलित क्यों न हों , पर यह मुद्दा सफ़ेद धन(आय) के देश के कुछ लोगों के हाथों में सिमटने और उसकी वजह से देश के सत्तर करोड़ लोगों के जीवन में मचे हाहाकार से बड़ा नहीं है | यह बात , रामदेव से ज्यादा हमारे देश के राजनेताओं को समझना है लेकिन जब वे स्वयं इसमें लिप्त हों तो उनके सामने बाबाओं के आगे नतमस्तक होने के अलावा रास्ता भी क्या बचता है | बहरहाल , आप उनके आश्रम में क्या करते हैं , व्यक्तिगत रूप से ये आपका विषय हो सकता है , पर सार्वजनिक रूप से जब एक राष्ट्रीय सोच पर बात करने के लिए कोई मिलने आये और आप नतमस्तक हो जायें , यह बताता है कि आप राजनीतिक रूप से कितने कमजोर हैं | इस रामदेव शरणं गच्छामी राजनीति से भाजपा को कोई फायदा होगा , मुझे नहीं लगता | हाँ , भाजपा के बड़े छोटे सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को इस बार उनके अध्यक्ष ने और भी ऑकवर्ड सिचुवेशन में डाल दिया है , पर , जैसा होता है कि राजनीति का शर्म से कोई वास्ता नहीं होता , वे इस सिचुवेशन से बाहर तो आ ही जायेंगे |

अरुण कान्त शुक्ला

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