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प्रणव से गोल्डन हेंडशेक-

दबंग आवाज
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प्रणव से गोल्डन हेंडशेक-

गांधी परिवार का आख़री संकट भी दूर-

अंततः, प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन की मनपसंद lलॉन पर टहलने का मौक़ा मिल रहा है और सोनिया गांधी को प्रणव मुखर्जी से निजात मिल रही है।

भारत में राष्ट्रपति का पद संवैधानिक प्रमुख होने के बावजूद, अधिकार विहीन सम्मानीय पद है। बजट सत्र में सरकार की तरफ से लिखकर दिए गये भाषण को पढ़ने और गणतंत्र दिवस पर परेड की सलामी लेने से ज्यादा कुछ करने को राष्ट्रपति के पास नहीं होता है। राष्ट्रपति बनने वाला हर व्यक्ति कहता है कि वह रबर स्टाम्प नहीं होगा, लेकिन उसके पास सरकार की तरफ से निकले वाले फरमानों के ऊपर आधी रात को दस्तखत करने के अलावा और कुछ भी महत्वपूर्ण काम नहीं होता है। या फिर, वह कोई निजी शौक पाल ले , जैसा कि अब्दुल कलाम साहब ने किया था, बच्चों और विज्ञान के ऊपर उपदेश देना। प्रणव मुखर्जी को ऐसा कोई शौक है, इसका अभी तक तो कोई पता नहीं चला है।

तो, ये बाजार की भाषा में सरकार का प्रणव को गोल्डन हेंडशेक है। बाजार(कांग्रेस के अंदर की राजनीति) के हालातों को देखते हुए प्रणव मुखर्जी ने इस गोल्डन हेंडशेक को स्वैच्छिक सेवानिवृति(VoluntaryVoluntary Retirement) में बदलकर एक तरह से ठीक ही किया है।

पिछले कुछ वर्षों में, खासकर पिछले पांच-छै वषों में, प्रणव मुखर्जी, कांग्रेस और विशेषकर यूपीए में संकट मोचक के रूप में पहचाने जाने लगे थे। प्रणव मुखर्जी, जिन्हें कांग्रेस और यूपीए के लोग ही नहीं, अन्य राजनीतिक दलों के लोग भी प्रणव दा कहकर संबोधित किया करते हैं, स्वयं काँग्रेस याने कांग्रेस अध्यक्ष और उनके पुत्र राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के रास्ते में कितना बड़ा संकट थे, ये किसी से भी कभी छुपा नहीं रहा। प्रणव मुखर्जी के लिए यही कम मुश्किल न था कि नब्बे के दशक के प्रारंभ में जब वे वित्त मंत्री और वह भी एशिया के सर्वश्रेष्ट वित्तमंत्री थे, तब के रिजर्व बैंक के गवर्नर मनमोहनसिंह के प्रधानमंत्रित्व में उन्हें पूरे आठ सालों से कार्य करना पड़ रहा है और वह भी तब जब भारतीय राजनीति का थोड़ा सा भी जानकार बिना लाग लपेट के कह सकता है कि केवल राजनीतिक मामलों में नहीं बल्कि आर्थिक मामलों और देश के हालातों को समझने के मामलों में भी वे प्रधानमंत्री से कहीं बहुत आगे हैं।

अपने से अयोग्य के नीचे काम करना और वह भी अपनी पूर्ण योग्यता और क्षमता के साथ, जिसका पूरा फायदा उसे मिले, जो उतना योग्य नहीं है, इसकी कचौट भारतीय राजनीति में शायद प्रणव मुखर्जी से बेहतर कोई नहीं जानता होगा।

यूपीए की बैठक में प्रणव का नाम घोषित होने के बाद एक टीवी चैनल ने प्रणव मुखर्जी के साथ लगभग 30 वर्षों से जुड़े उनके पर्सनल स्टाफ के कर्मचारी का साक्षात्कार लिया तो उसने बेलाग बोला कि वो तो प्रणव मुखर्जी को प्रधानमंत्री देखना चाहता था, चूंकि वैसा नहीं हो रहा है, राष्ट्रपति ही सही। जब प्रणव ने यह कहा कि उन्हें अपने घर के लॉन के चालीस चक्कर लगाने पड़ते हैं, जबकि राष्ट्रपति भवन के लॉन के केवल दो चक्कर लगाने पड़ेंगे, इसलिए वह उन्हें बहुत पसंद है तो उनकी चेतना में न केवल इंदिरा गांधी मृत्यु के बाद का अनुभव रहा होगा बल्कि वर्तमान का यथार्थ भी होगा कि यदि यूपीए-2, यूपीए-3 में पहुँचती है तो भी 7, रेसकोर्स का रास्ता उनके लिए नहीं खुलेगा और रायसेना हिल्स जाना ज्यादा बेहतर है। यही कारण है कि उन्होंने 2009 में ही कह दिया था कि वे अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे।

पिछले तीन वर्षों में मनमोहनसिंह के मंत्रिमंडल में प्रणव मुखर्जी और पी.चिदंबरम के बीच चल रही खटपट पर सोनिया गांधी की पैनी निगाह न रही हो, ऐसा हो नहीं सकता। सोनिया गांधी को यह तो समझ में आ रहा होगा कि मनमोहनसिंह और उनके आर्थिक सुधार दो दशकों की यात्रा के बाद नौ दिन चले अढ़ाई कोस को प्राप्त हो चुके हैं और मनमोहनसिंह को बदलने का दबाव चारों तरफ से निरंतर बढ़ता जा रहा है। एनडीए की बात छोड़ भी दें तो ममता और मुलायम का बार बार मध्यावधि चुनावों की बात करना, उस दबाव को बढ़ा ही रहा होगा। चिदंबरम, फिलवक्त कोई बड़ी परेशानी की वजह इसलिए नहीं बन सकते कि क्योंकि वो 2009 के लोकसभा चुनावों के दौरान भ्रष्ट तरीके अपनाने, अपने लड़के को फायदा पहुँचाने और टू जी के मामलों में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं और एक प्रकार से उनकी नकेल कांग्रेस अध्यक्ष के हाथों में हैं। मनमोहनसिंह की खुद की कोई राजनीतिक वकत नहीं है और वो वैसे ही गांधी परिवार की सत्ता की आकांक्षाओं, भारत की राजनीतिक परिस्थितियों और वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ,अमेरिका के मध्य के समझौते की पैदाईश हैं। तो, चाहे, प्रधानमंत्री को अभी बदलने का सवाल हो या आम चुनावों के बाद, यदि यूपीए सत्ता में लौटती है तो राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के रास्ते में अगर कोई रोड़ा है, तो वो प्रणव ही थे।

तो, कांग्रेस और कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन के लॉन पर टहलने भेजकर, देश और यूपीए के घटकों को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि चाहे मध्यावधि चुनाव हों या आम चुनाव कौन कांग्रेस को लीड करेगा? भारत का अगला प्रधानमंत्री, यदि यूपीए सत्ता में वापस आती है, तो, वो राहुल गांधी ही होंगे, चाहे वो उसके लिए तैयार(योग्य)हों या न हों। आप कह सकते हैं कि प्रणव कांग्रेस के गोल्डन हेंडशेक को स्वीकार करके गांधी परिवार का आख़री संकट भी दूर कर गये।

अरुण कान्त शुक्ला

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