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सेन होज़े (sen josh) के एक भारतीय रेस्टुरेंट ‘मधुबन’ में भरत(बदला हुआ नाम) नाम का एक छात्र वेटर का काम करता है| भारत से बी टेक करने के बाद वह अमेरिका गया हैं. वहां एमटेक कर रहा है| रेस्टोरेंट में काम करके खाली समय में कुछ पैसा इस काम से कमा लेता हैं. हो सकता है लक्ष्मण कल किसी कंपनी का सीईओ बन जायें |
क्या ये भरत या ऐसे ही अन्य ढेरों किसी प्रशंसा या सलाम के हकदार हैं..?
भरत और ऐसे ही अन्य ढेरों भारत में बुनियादी शिक्षा लेने के बाद अमेरिका चले जाते हैं| याने, बुनियादी शिक्षा देश में लो और फिर अमेरिका चले जाओ| वहां वेटर का काम करने में भी शर्म नहीं और देश में एक गिलास उठा कर दूसरी जगह रखने में भी शर्म | विदेश जाने के पहले ऐसे सभी लोगों को उनकी बुनियादी तालीम हासिल करने में जितना पैसा देश में लगा है, उसे वापस करके जाना चाहिए| यह जनता के टेक्स का पैसा है, जिससे उन सब ने बुनियादी तालीम हासिल की है| इसमें मेरा पैसा भी शामिल है जो मैंने टेक्स के रूप में चुकाया है और चुका रहा हूँ| वरना उनके पिताश्री के पिताश्री भी उन्हें नहीं पढ़ा सकते थे | ऐसे अधिकाँश लोग कभी वापस नहीं आते| मुझे विदेश जाकर शान बघारने वाले ऐसे सभी लोगों से सख्त चिढ़ है| फिर चाहे वह व्यक्ति किसी दिन अमेरिका का प्रेसिडेंट भी क्यों न बन जाए| ये राष्ट्र प्रेम तो छोडिये, भारतीय कहलाने के भी लायक नहीं हैं| ऐसे लोगों से गहरी पूछताछ कीजिये, वे उगल देंगे कि उन्हें अमेरिका की नागरिकता चाहिए और फिर दूसरी सांस में कहेंगे कि अमेरिका भारत से श्रेष्ठ है| सभी, ऐसे निकृष्ट लोगों को जो देश छोड़कर विदेश में बस जाते हैं और वहां सब करने तैयार रहते हैं..कि क्या प्रशंसा और उन्हें क्या सलाम..उन्हें तो लानत देनी चाहिए|
लानत है..!
अरुण कान्त शुक्ला, 27/8/2014
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